उत्तराखंड के पंचायत चुनाव पर रोक: इंद्रेश मैखुरी ने सरकार की निरंकुशता पर लगाई लगाम
उत्तराखंड में त्रिस्तरीय पंचायतों पर अंतरिम रोक लगाए जाने के फैसले को लेफ्ट ने सही...

उत्तराखंड के पंचायत चुनाव पर रोक: इंद्रेश मैखुरी ने सरकार की निरंकुशता पर लगाई लगाम
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उत्तराखंड में त्रिस्तरीय पंचायत चुनावों पर अंतरिम रोक का फैसला लेफ्ट पार्टी ने सही करार दिया है। कामरेड इंद्रेश मैखुरी का मानना है कि उच्च न्यायालय ने चुनाव पर रोक लगाकर उत्तराखंड की पुष्कर सिंह धामी सरकार की मनमर्जी और निरंकुशता पर अंकुश लगाया है। उनके विचारों में स्पष्टता और गहराई दोनों हैं, जो वर्तमान राजनीतिक धाराओं को दर्शाते हैं।
कोर्ट का फैसला और उसका महत्व
उत्तराखंड उच्च न्यायालय ने त्रिस्तरीय पंचायत चुनावों की प्रक्रिया पर अस्थायी रोक लगाकर राज्य सरकार की कार्यशैली पर गंभीर सवाल उठाए हैं। इंद्रेश मैखुरी ने पुष्टि की है कि त्रिस्तरीय पंचायतों का गठन 73वें संविधान संशोधन के अनुसार होना अनिवार्य था, लेकिन राज्य सरकार ने इस प्रक्रिया में गंभीर अव्यवस्था दिखाई। उनके अनुसार, न्यायालय के आदेश से यह स्पष्ट होता है कि सरकार संविधान और वैधानिक नियमों के पालन में विफल रही है।
सरकार की निरंकुशता का पर्दाफाश
मैखुरी ने कहा कि आवश्यक नियमावली का गजट नोटिफिकेशन सरकार ने अदालत के सामने पेश नहीं किया, जिसके कारण न्यायालय को हस्तक्षेप करने पर मजबूर होना पड़ा। उन्होंने आरोप लगाया कि सरकार ने चुनाव की तिथियों की घोषणा करने में जल्दबाजी दिखाई और प्रक्रिया को उचित तरीके से नहीं अपनाया। यह सम्पूर्ण घटनाक्रम सरकार की कार्यकुशलता पर गंभीर सवाल उठाता है और लोकतांत्रिक मूल्यों की अनदेखी करता है।
चुनावों का समय: कानूनी और संवैधानिक दृष्टिकोण
इंद्रेश मैखुरी ने कहा, "पंचायत चुनाव छह महीने पहले हो जाने चाहिए थे।" हालांकि, सरकार ने निर्धारित समय पर चुनाव नहीं कराए और प्रशासकों की नियुक्ति की, जो कि अनैतिक है। कोर्ट का निर्णय पंचायतों के संचालन में पारदर्शिता बनाए रखने और विधायिका के प्रति जवाबदेही सुनिश्चित करने का प्रतीक है।
निष्कर्ष
इंद्रेश मैखुरी का संदेश स्पष्ट है कि उत्तराखंड के लोगों को अपनी आवाज उठाने का अधिकार है और राजनीतिक दलों को उनका सम्मान करना चाहिए। उच्च न्यायालय द्वारा दिया गया निर्णय वर्तमान स्थिति को सचेत करने के साथ-साथ भविष्य में सही राजनीतिक वातावरण बनाए रखने के लिए आवश्यक है।
कुल मिला कर, यह घटना दर्शाती है कि लोकतंत्र में पारदर्शिता और जवाबदेही पर कोई समझौता नहीं होना चाहिए। यह भी सिद्ध करता है कि न्यायपालिका देश के संविधान और नागरिकों के अधिकारों की रक्षा करने वाला अंतिम रक्षक है। इसके साथ ही, यह स्थिति राजनीतिक दलों के लिए एक चेतावनी है कि वे अपनी जिम्मेदारियों का पालन करें।
कम शब्दों में कहें तो, उत्तराखंड के पंचायत चुनावों पर रोक लगाने का निर्णय एक महत्वपूर्ण कदम है जो लोकतंत्र में पारदर्शिता और जवाबदेही को सुनिश्चित करता है। अधिक अपडेट के लिए यहां क्लिक करें.
सादर,
टीम PWC News - दीपिका शर्मा
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