थानेश्वर महादेव मंदिर में बैकुंठ चतुर्दशी मेले की तैयारियां पूर्ण, रात्रिकालीन ‘खड़ दिया अनुष्ठान’ के लिए अब तक 5 नि:संतान दंपतियों ने किया पंजीकरण

पौड़ी: पौड़ी जनपद के विकासखंड कल्जीखाल की पट्टी मनियारस्यूं के ग्राम थनुल स्थित सिद्धपीठ थानेश्वर महादेव मंदिर परिसर में आगामी 4 नवंबर को आयोजित होने वाले ऐतिहासिक बैकुंठ चतुर्दशी मेले को लेकर क्षेत्र में उत्साह का माहौल है। विगत दो दशकों से क्षेत्र में बुनियादी सुविधाओं के अभाव के कारण निरंतर पलायन से कई गांव […] The post थानेश्वर महादेव मंदिर में बैकुंठ चतुर्दशी मेले की तैयारियां पूर्ण, रात्रिकालीन ‘खड़ दिया अनुष्ठान’ के लिए अब तक 5 नि:संतान दंपतियों ने किया पंजीकरण appeared first on Devbhoomisamvad.com.

Oct 24, 2025 - 18:53
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थानेश्वर महादेव मंदिर में बैकुंठ चतुर्दशी मेले की तैयारियां पूर्ण, रात्रिकालीन ‘खड़ दिया अनुष्ठान’ के लिए अब तक 5 नि:संतान दंपतियों ने किया पंजीकरण

पौड़ी: पौड़ी जनपद के विकासखंड कल्जीखाल की पट्टी मनियारस्यूं के ग्राम थनुल स्थित सिद्धपीठ थानेश्वर महादेव मंदिर परिसर में आगामी 4 नवंबर को आयोजित होने वाले ऐतिहासिक बैकुंठ चतुर्दशी मेले को लेकर क्षेत्र में उत्साह का माहौल है।

विगत दो दशकों से क्षेत्र में बुनियादी सुविधाओं के अभाव के कारण निरंतर पलायन से कई गांव वीरान हो गए हैं और अनेक घरों पर ताले झूल रहे हैं। लेकिन बैकुंठ चतुर्दशी मेले की आस्था और परंपरा हर वर्ष प्रवासियों को अपने गांवों की ओर वापस खींच लाती है। मेले के अवसर पर बंद घरों के ताले खुल जाते हैं, आंगन फिर से आबाद हो उठते हैं और घरों के झाले उतर जाते हैं।

स्थानीय निवासियों के अनुसार, मेले के दौरान मंदिर परिसर में आयोजित रात्रिकालीन ‘खड़ दिया मेला’ धार्मिक और सांस्कृतिक महत्व रखता है। हालांकि मंदिर तक जाने वाले संपर्क मार्ग झाड़ियों से आच्छादित हैं, परंतु थनूल गांव की महिलाएं पारंपरिक रूप से हर वर्ष मंदिर मार्ग की साफ-सफाई का कार्य स्वयं करती हैं।

मंदिर समिति के अध्यक्ष जगमोहन डांगी ने बताया कि मेले की तैयारियां पूरी कर ली गई हैं। इस वर्ष अब तक पांच दंपतियों का पंजीकरण समिति के पास हो चुका है। श्रद्धालुओं के लिए प्रसाद के रूप में विशाल भंडारा आयोजित किया जाएगा, जिसका आयोजन थनूल गांव के प्रवासी नरेंद्र सिंह नेगी और विमल रावत संयुक्त रूप से करेंगे।

थानेश्वर महादेव मंदिर में लगने वाला यह मेला न केवल धार्मिक आस्था का केंद्र है बल्कि क्षेत्रीय एकता और गांवों के पुनर्जीवन का प्रतीक भी बन गया है।

जगमोहन डांगी

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