आपातकाल लागू करना लोकतंत्र को नष्ट करने के लिए भूकंप से कम: उपराष्ट्रपति

उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने कुमाऊँ विश्वविद्यालय, नैनीताल के स्वर्ण जयंती समारोह को संबोधित करते हुए 25 जून 1975 को लगाए गए आपातकाल को भारतीय लोकतंत्र की सबसे काली रात बताया। उन्होंने कहा कि यह वह समय था जब व्यक्तिगत स्वार्थों के चलते संविधान को कुचला गया। कैबिनेट को दरकिनार कर तत्कालीन प्रधानमंत्री ने आपातकाल की […] The post आपातकाल लागू करना लोकतंत्र को नष्ट करने के लिए भूकंप से कम: उपराष्ट्रपति appeared first on Khabar Sansar News.

Jun 25, 2025 - 18:53
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आपातकाल लागू करना लोकतंत्र को नष्ट करने के लिए भूकंप से कम: उपराष्ट्रपति

आपातकाल लागू करना लोकतंत्र को नष्ट करने के लिए भूकंप से कम: उपराष्ट्रपति

उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने हाल ही में कुमाऊँ विश्वविद्यालय, नैनीताल के स्वर्ण जयंती समारोह के दौरान भारतीय लोकतंत्र के लिए एक महत्वपूर्ण भाषण दिया। उन्होंने 25 जून 1975 को लगाए गए आपातकाल को लोकतंत्र की सबसे काली रात बताया। उनके अनुसार, यह वह समय था जब व्यक्तिगत स्वार्थ के चलते संविधान को कुचला गया और नागरिकों के मौलिक अधिकारों का उल्लंघन किया गया। इस लेख में हम उपराष्ट्रपति के कुछ महत्वपूर्ण बिंदुओं की चर्चा करेंगे।

आपातकाल और इसके प्रभाव

धनखड़ ने साफ कहा कि आपातकाल लागू करना लोकतंत्र को नष्ट करने के लिए एक भूकंप से कम नहीं था। उन्होंने इस दौरान 1.4 लाख लोगों की गिरफ्तारी की बात भी कही। इस घड़ी ने मौलिक अधिकारों को समाप्त कर दिया और नागरिकों की न्यायपालिका तक पहुँच को रोक दिया। उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि नौ उच्च न्यायालयों ने मौलिक अधिकारों की रक्षा की बात की, लेकिन सर्वोच्च न्यायालय ने इसे पलटा। यह संविधान और जनता के विश्वास पर गहरा आघात था।

संविधान हत्या दिवस का महत्व

उपराष्ट्रपति ने सभा में उपस्थित युवाओं को प्रेरित करते हुए कहा कि उन्हें इस डरावने दौर को समझना चाहिए ताकि वे लोकतंत्र की रक्षा के महत्व को जान सकें। उन्होंने सुझाव दिया कि ‘संविधान हत्या दिवस’ मनाना न केवल जरूरी है, बल्कि यह युवा पीढ़ी को यह सिखाने के लिए भी महत्वपूर्ण है कि लोकतंत्र की कीमत क्या होती है।

शिक्षा और नवाचार पर जोर

धनखड़ ने अपने संबोधन के दौरान शिक्षा के महत्व पर भी प्रकाश डाला। उन्होंने विश्वविद्यालय को केवल डिग्री देने वाले केंद्र के रूप में न देखकर, इसे सोच और नवाचार का केंद्र मानने की बात की। पूर्व छात्रों की भूमिका को महत्व देते हुए उन्होंने कहा कि यदि 1 लाख पूर्व छात्र ₹10,000 वार्षिक योगदान करें, तो संस्थान आत्मनिर्भर बन सकता है। यह सुझाव आगे की शिक्षा और व्यवस्था के लिए एक सकारात्मक दिशा दिखाता है।

युवाओं की जिम्मेदारी

राज्यपाल लेफ्टिनेंट जनरल गुरमीत सिंह ने भी समारोह में युवाओं की भूमिका और गुणवत्तापूर्ण शिक्षा की आवश्यकता पर जोर दिया। उन्होंने बताया कि शिक्षक केवल पाठ्यपुस्तकें नहीं पढ़ाते, बल्कि राष्ट्र का नेतृत्व भी गढ़ते हैं। इस अवसर पर उपराष्ट्रपति ने अपने माता-पिता के नाम पर पौधे भी रोपे, जो कि प्रकृति के प्रति उनकी प्रतिबद्धता को दर्शाता है।

इस तरह, उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने कुमाऊँ विश्वविद्यालय के स्वर्ण जयंती समारोह में अपने विचारों के माध्यम से न केवल अतीत की याद दिलाई, बल्कि आज की पीढ़ी को लोकतंत्र को सुरक्षित रखने की जिम्मेदारी भी सौंपी।

इस महत्वपूर्ण आयोजन में उत्तराखंड के वरिष्ठ प्रशासनिक और राजनीतिक अधिकारी, मंत्रीगण और कुलपति भी उपस्थित रहे, जो इस बात का सबूत है कि शिक्षा और लोकतंत्र का संरक्षण कितना आवश्यक है।

अंत में, धनखड़ का भाषण न केवल भारतीय लोकतंत्र के लिए एक चेतावनी थी, बल्कि यह एक प्रेरणा भी थी कि एक जिम्मेदार नागरिक के रूप में हमें लोकतंत्र की रक्षा करनी चाहिए।

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