करन माहरा के गंभीर सवाल: राज्य निर्वाचन आयोग की भूमिका पर उठे गंभीर सवाल

उत्तराखंड कांग्रेस अध्यक्ष करन माहरा ने पंचायत चुनाव में राज्य निर्वाचन आयोग की भूमिका को...

Jul 14, 2025 - 18:53
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करन माहरा के गंभीर सवाल: राज्य निर्वाचन आयोग की भूमिका पर उठे गंभीर सवाल

करन माहरा के गंभीर सवाल: राज्य निर्वाचन आयोग की भूमिका पर उठे गंभीर सवाल

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उत्तराखंड कांग्रेस अध्यक्ष करन माहरा ने पंचायत चुनावों में राज्य निर्वाचन आयोग की भूमिका को लेकर गंभीर सवाल उठाए हैं। उनका कहना है कि उत्तराखंड राज्य निर्वाचन आयोग की कार्यप्रणाली और पारदर्शिता दोनों ही अब प्रश्नचिह्न के दायरे में हैं। माहरा ने चिंता व्यक्त की कि आयोग अब कानून के प्रति नहीं, बल्कि राजनीतिक शक्तियों के प्रति जवाबदेह होता जा रहा है, जो लोकतंत्र के लिए खतरनाक है।

राजनीतिक दबाव का स्पष्ट प्रमाण

हाल ही में संपन्न नगर निकाय और पंचायत चुनावों की प्रक्रिया ने आयोग के कार्यों में राजनीतिक दबाव का स्पष्ट संकेत दिया है। उदाहरण स्वरूप, उत्तराखंड पंचायती राज अधिनियम में यह नियम है कि यदि किसी दावेदार का नामांकन शहरी और ग्रामीण दोनों जगहों पर दर्ज है, तो उसका पर्चा अमान्य हो जाता है। बावजूद इसके, कई जिलों में इस नियम का पालन नहीं किया गया, जो चुनावी प्रक्रिया के लिए गंभीर प्रश्न उठाता है।

दुर्भाग्यपूर्ण चुनावी पूर्वाग्रह

चुनावों में पक्षपात और गड़बड़ियों के कुछ प्रमुख उदाहरण:

  • काशीपुर: अनुसूचित जाति की उम्मीदवार नर्मता का नामांकन निरस्त कर दिया गया, जबकि उनके मायके का प्रमाणपत्र मान्य था।
  • रुद्रप्रयाग: एक प्रत्याशी का नामांकन इसलिए स्वीकार कर लिया गया क्योंकि उनके ऊपर सरकारी बकाया राशि थी।

यह घटनाएं स्पष्ट रूप से दिखाती हैं कि निर्वाचन आयोग ने निष्पक्षता के सिद्धांत की अनदेखी की है, जिससे निर्वाचन प्रक्रिया की विश्वसनीयता पर गहरा प्रश्नचिह्न लग जाता है। इस तरह की गड़बड़ियां लोकतंत्र के आधार को हिला सकती हैं, खासकर जब चुनावी प्रक्रियाएं राजनीतिक लाभ के लिए मोड़ दी जा रही हों।

निर्वाचन अधिकारियों की प्रभावशीलता

करन माहरा ने निर्वाचन अधिकारियों की भूमिका पर भी सवाल उठाए। उन्होंने कहा कि अधिकतर जिलों में अनुभवहीन और कनिष्ठ अधिकारियों को चुनावी जिम्मेदारियां सौपी गई हैं। ये अधिकारी न तो प्रशासनिक प्रशिक्षण का अनुभव रखते हैं और न ही स्वतंत्र निर्णय लेने की क्षमता रखते हैं।

यह एक चिंताजनक तथ्य है, क्योंकि इस स्थिति में निष्पक्ष चुनाव के आयोजन की संभावना कम हो जाती है। माहरा ने चेतावनी दी है कि जब सरकार और प्रशासन दोनों ही राजनीतिक शक्तियों के इशारों पर चलते हैं, तब लोकतंत्र केवल दिखावा बनकर रह जाता है।

संघर्ष और चुनौती

करन माहरा ने कहा कि यदि भाजपा सरकार इसी तरह अपनी मनमानी चलाती रही, तो भविष्य में जनता का विश्वास टूट जाएगा। उन्होंने जनता से अपील की है कि उन्हें इस गड़बड़ी के खिलाफ जागरूक रहना चाहिए और संघर्ष करना चाहिए ताकि चुनाव सही ढंग से हो सकें।

इस प्रकार, माहरा की चिंताएं केवल उत्तराखंड तक ही सीमित नहीं हैं, बल्कि यह पूरे देश में चुनावी प्रक्रिया की ईमानदारी को प्रभावित कर सकती हैं। यदि हमें एक सही सरकार और जनहित में नीतियों की आवश्यकता है, तो निर्वाचन आयोग को अपनी भूमिका को निष्पक्षता के साथ निभाना अनिवार्य है।

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