Explainer: 131 साल बाद स्वामी विवेकानंद का इतिहास दोहराने का मौका, UN ने श्री श्री रविशंकर को ही क्यों चुना?
भारत की अध्यात्मिक ताकत का लोहा पूरी दुनिया युगों-युगों से मानती रही है। देश के सुविख्यात ऋषियों, मुनियों और संतों ने अपने पुरुषार्थ से मां भारती के कण-कण को अभिसिंचित करके दुनिया में भारत की अमिट छाप छोड़ी है। यही वजह है कि भारत की अध्यात्मिक का गाथा और उसके हिंदुत्व की ज्वाला दुनिया को आज भी रौशन करती है।
Explainer: 131 साल बाद स्वामी विवेकानंद का इतिहास दोहराने का मौका
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स्वामी विवेकानंद का ऐतिहासिक योगदान
स्वामी विवेकानंद ने 1893 में शिकागो विश्व धर्म महासभा में भारतीय संस्कृति को प्रस्तुत किया। उनके विचारों ने न केवल भारत में बल्कि पूरे विश्व में एक गहरी छाप छोड़ी। अब, 131 साल बाद, भारतीय संस्कृति और दर्शन को फिर से वैश्विक मंच पर लाने का एक सुनहरा अवसर आया है।
UN का चयन: श्री श्री रविशंकर
हाल ही में, संयुक्त राष्ट्र (UN) ने भारतीय गुरु और सामाजिक कार्यकर्ता श्री श्री रविशंकर को एक विशेष कार्यक्रम के लिए चुना है। यह चयन स्वामी विवेकानंद की परंपरा की पुनरावृत्ति के रूप में देखा जा रहा है। भारत के लिए यह गर्व की बात है, क्योंकि यह एक बार फिर से विश्व में भारतीय संस्कृति का प्रतिनिधित्व करेगा।
क्यों है ये अवसर महत्वपूर्ण?
श्री श्री रविशंकर के चयन को स्वामी विवेकानंद के संदेशों की पुनर्स्थापना के रूप में देखा जा रहा है। उनके द्वारा किए गए कार्य और उपदेश आज भी युवाओं को प्रेरित कर रहे हैं। यह समय है जब हम विवेकानंद के विचारों को फिर से जीवित करें और उनसे प्रेरणा लें।
आगे क्या?
इस अवसर का पूरा लाभ उठाने के लिए भारतीय समाज को एकजुट होना होगा। शिक्षा, राजनीति, और सामाजिक न्याय में स्वामी विवेकानंद के दृष्टिकोण को अपनाना आवश्यक है। अब वक्त है कि हम सभी मिलकर उनके विचारों को एक नई दिशा दें।
निष्कर्ष
स्वामी विवेकानंद के 131 वर्ष बाद श्री श्री रविशंकर का चयन एक सकारात्मक संकेत है। इसका उद्देश्य न केवल भारतीय संस्कृति को पुनर्जीवित करना है, बल्कि युवाओं को आज के चुनौतियों का सामना करने के लिए प्रेरित करना भी है।
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