उत्तराखंड में विजिलेंस कार्रवाई पर गंभीर सवाल: कई निर्दोष अधिकारियों को फंसाने के आरोप, नीरज दत्ता केस के निर्देशों की अनदेखी से विभाग की साख पर संकट

उत्तराखंड में विजिलेंस की कार्रवाई पर उठे सवाल। कई निर्दोष अधिकारियों को बिना ठोस साक्ष्य के फंसाने के आरोप। सुप्रीम कोर्ट के नीरज दत्ता केस के निर्देशों की अनदेखी।

Sep 27, 2024 - 00:57
Sep 27, 2024 - 02:40
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उत्तराखंड में विजिलेंस कार्रवाई पर गंभीर सवाल: कई निर्दोष अधिकारियों को फंसाने के आरोप, नीरज दत्ता केस के निर्देशों की अनदेखी से विभाग की साख पर संकट

उत्तराखंड में विजिलेंस विभाग का भ्रष्टाचार विरोधी अभियान जोर-शोर से चल रहा है, लेकिन हाल के मामलों में यह स्पष्ट हो गया है कि विभाग की कार्यप्रणाली में गहरी खामियां हैं। देहरादून से लेकर हल्द्वानी तक, कई निर्दोष अधिकारियों को बिना किसी ठोस आधार पर विजिलेंस ट्रैप में फंसाया जा रहा है। यह सवाल उठाता है कि क्या उत्तराखंड विजिलेंस वास्तव में भ्रष्टाचार से लड़ने का काम कर रही है, या निर्दोषों को फंसाकर अपनी "सफलता" के आंकड़े बढ़ा रही है?

विजिलेंस की छवि पर संकट

उत्तराखंड विजिलेंस विभाग का उद्देश्य भ्रष्टाचार का खात्मा करना है, लेकिन इसके उलट, यह विभाग खुद अपनी अधिकारहीनता और अन्यायपूर्ण कार्यवाही के कारण लोगों का भरोसा खो रहा है। विभाग के अधिकारी चाटुकारिता में लिप्त होकर निर्दोष अधिकारियों और कर्मचारियों को बिना किसी ठोस सबूत के फंसाते हुए नजर आ रहे हैं। यह न केवल विभाग की साख पर सवाल उठाता है, बल्कि राज्य की न्यायिक व्यवस्था को भी कमजोर करता है।

बिना मांग और स्वीकार्यता के फंसाया जा रहा है निर्दोषों को

हल्द्वानी और देहरादून जैसे प्रमुख शहरों में विजिलेंस विभाग द्वारा किए गए कई ट्रैप ऑपरेशनों में देखा गया है कि निर्दोष अधिकारियों को बिना किसी रिश्वत की मांग और स्वीकार्यता के ही फंसा दिया गया। ट्रैप ऑपरेशनों में नियमानुसार स्वतंत्र गवाह की मौजूदगी होनी चाहिए, लेकिन कई मामलों में विजिलेंस अधिकारी खुद ही साक्ष्य पेश कर रहे हैं, जो स्पष्ट रूप से एकतरफा और अनुचित है।

सुप्रीम कोर्ट के निर्देशों की अनदेखी

सुप्रीम कोर्ट ने नीरज दत्ता केस में स्पष्ट निर्देश दिए थे कि ट्रैप ऑपरेशन के दौरान स्वतंत्र गवाहों की मौजूदगी अनिवार्य है और सही तरीके से सत्यापन होना चाहिए। लेकिन, उत्तराखंड विजिलेंस विभाग ने इन निर्देशों की खुलेआम अनदेखी की है। कई मामलों में बिना किसी स्वतंत्र गवाह के अधिकारियों को फंसाया गया है। यह न केवल कानून का उल्लंघन है, बल्कि यह विभाग की निष्पक्षता पर भी गंभीर सवाल खड़ा करता है।

विजिलेंस अधिकारियों की चाटुकारिता और भ्रष्टाचार का खेल

उत्तराखंड के विजिलेंस अधिकारियों पर चाटुकारिता का आरोप लग रहा है। कई मामलों में देखा गया है कि ये अधिकारी अपने वरिष्ठ अधिकारियों को खुश करने के लिए निर्दोष लोगों को फंसाने का काम कर रहे हैं। यह न केवल विभाग की साख को बर्बाद कर रहा है, बल्कि ईमानदार अधिकारियों के मनोबल को भी तोड़ रहा है।

विजिलेंस की निष्पक्षता पर सवालिया निशान

विजिलेंस विभाग के कई ट्रैप ऑपरेशनों में यह देखा गया है कि सही जांच प्रक्रिया का पालन नहीं किया जा रहा है। विभाग की कार्यवाही में पारदर्शिता की कमी है, और निर्दोष अधिकारियों को बेवजह फंसाया जा रहा है। हल्द्वानी और देहरादून में हाल ही के ट्रैप ऑपरेशनों में यह स्पष्ट रूप से देखा गया है कि सिर्फ़ अधिकारियों की नौकरी बचाने और सिस्टम को दिखाने के लिए निर्दोष लोगों की गिरफ्तारी की जा रही है।

विजिलेंस के खिलाफ बढ़ता आक्रोश

उत्तराखंड के विभिन्न हिस्सों, खासकर हल्द्वानी और देहरादून में, विजिलेंस विभाग की कार्यवाही के खिलाफ लोगों में आक्रोश बढ़ता जा रहा है। कई अधिकारियों और उनके परिवारजनों का कहना है कि उन्हें बेवजह फंसाया गया है और विभाग द्वारा की गई कार्रवाई पूरी तरह से अन्यायपूर्ण है।

विजिलेंस की विश्वसनीयता पर गहरा संकट

विजिलेंस विभाग की यह अन्यायपूर्ण कार्यप्रणाली जनता में विभाग की विश्वसनीयता को कमजोर कर रही है। देहरादून से लेकर हल्द्वानी तक लोगों का यह मानना है कि विजिलेंस का उद्देश्य अब भ्रष्टाचार से लड़ना नहीं, बल्कि अपनी साख बचाने और नंबर बढ़ाने के लिए निर्दोषों को फंसाना रह गया है।

निष्कर्ष: निष्पक्षता की जरूरत

उत्तराखंड विजिलेंस विभाग को अपनी कार्यप्रणाली में सुधार करने की जरूरत है। बिना ठोस साक्ष्य के निर्दोष अधिकारियों को फंसाने का काम तत्काल बंद होना चाहिए। विभाग को अपनी निष्पक्षता और पारदर्शिता सुनिश्चित करनी होगी, ताकि जनता का भरोसा वापस पाया जा सके।

अगर यह प्रक्रिया यूं ही जारी रही, तो विजिलेंस विभाग का नाम हमेशा के लिए संदेह और अन्याय के साथ जुड़ जाएगा, और यह विभाग भ्रष्टाचार से लड़ने के बजाय निर्दोषों को फंसाने के लिए कुख्यात हो जाएगा।

उत्तराखंड के लोग अब विजिलेंस विभाग पर विश्वास खो रहे हैं, और यह उत्तराखंड की न्याय व्यवस्था के लिए एक गंभीर खतरा बनता जा रहा है।

विजिलेंस विभाग, अपने उद्देश्यों से भटक गया है, और इसे वापस पटरी पर लाने के लिए तत्काल सुधार की जरूरत है।

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