साधु-संतों ने लगाई भरी हुंकार, चाहते हैं सनातन बोर्ड का गठन; समान नागरिक संहिता को जरुरी माना, सुनें पूरी खबर PWCNews हरपल।
देवकीनंदन ठाकुर ने कहा कि तिरुपति बालाजी मंदिर के प्रसाद में पशुओं की चर्बी के मिलने का मसला बड़ा मुद्दा है ,ये घटना दुबारा न हो सके इसलिए हमें " सनातनी बोर्ड" चाहिए,हम इस मंच से मांग करते हैं।
साधु-संतों ने लगाई भरी हुंकार, चाहते हैं सनातन बोर्ड का गठन
साधु-संतों का एक बड़ा समूह हाल ही में व्यक्तिगत और सामाजिक नीतियों के लिए अपनी आवाज उठाने के लिए एकजुट हुआ है। इन संतों का मुख्य उद्देश्य सनातन धर्म को सहेजने के लिए एक प्रभावशाली संगठन का गठन करना है - जिसे "सनातन बोर्ड" कहा जा रहा है। इस संगठन की आवश्यकता को देखते हुए, साधु-संतों ने समान नागरिक संहिता (Uniform Civil Code) का समर्थन किया है, जिसे वे समाज के सभी वर्गों के लिए आवश्यक मानते हैं। News by PWCNews.com
समान नागरिक संहिता: एक आवश्यक कदम
समान नागरिक संहिता की बात करते हुए साधु-संतों का मत है कि यह सभी धार्मिक समुदायों के बीच समानता स्थापित करने का एक महत्वपूर्ण कदम है। वे इसे एक ऐसा कानून मानते हैं जो समाज में भेदभाव को समाप्त कर, सभी नागरिकों को एक समान अधिकार प्रदान करेगा। संतों ने इस मुद्दे पर विचार करते हुए कहा कि संहिताओं को एक ऑल-इंप्लेसिव ढंग से लागू किया जाना चाहिए ताकि कोई भी समुदाय हाशिए पर न रहे। उनके अनुसार, यह कानून न केवल कानून के अधिकार को बढ़ाएगा, बल्कि भारतीय संस्कृति में भी भक्ति और प्रेम को बढ़ावा देगा।
संतों की एकता और आवाज़
इन संतों की एकता इस बात को दर्शाती है कि वे केवल धार्मिक रूप से नहीं बल्कि सामाजिक मुद्दों पर भी अपनी जिम्मेदारी को समझते हैं। उन्होंने एकजुट होकर सरकार से अनुरोध किया है कि वह इस दिशा में सकारात्मक कदम उठाए। संतों का कहना है कि उन्हें समाज के सभी वर्गों के हितों का ध्यान रखने की जरूरत है।
साधु-संतों ने इस अभियान के माध्यम से अपने अनुयायियों और आम नागरिकों से अपील की है कि वे इस मुद्दे के बारे में जागरूक हों और सभी के लिए समान अधिकारों की मांग के लिए एकजुट हों। इसके अलावा, उन्होंने आगामी बैठकों में इस विषय पर और चर्चा करने का भी आश्वासन दिया है।
समापन विचार
साधु-संतों का यह प्रयास निश्चित ही एक दिशा देने वाला है, जो न केवल धार्मिक समुदायों को बल्कि पूरे समाज को एक साथ लाने की कोशिश कर रहा है। अब देखना यह है कि सरकार उनके इस आह्वान पर किस प्रकार प्रतिक्रिया देती है। इसके साथ ही, समाज के अन्य वर्गों का भी इस मुद्दे पर क्या दृष्टिकोण है, यह भी महत्वपूर्ण है।
जानकारों और नागरिकों के बीच इस मुद्दे की गहराई से चर्चा की आवश्यकता है ताकि सभी को अपनी आवाज़ उठाने का अवसर मिल सके।
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