महाकुंभ में साधु को चिलम पीना कितना सही? स्वामी रामदेव ने दिया जवाब
किसी भी कुंभ या महाकुंभ में अक्सर देखने को मिलता है कि वहां लाखों की संख्या में नागा साधू आते हैं और चिलम सुलगाते दिखते हैं। विदेशी लोग इनकी फोटो खींचकर पूरी दुनिया में वायरल करते हैं। आइये जानते हैं इस पर योग गुरु स्वामी रामदेव का क्या कहना है...
महाकुंभ में साधु को चिलम पीना कितना सही?
महाकुंभ, जो भारतीय संस्कृति का एक महत्वपूर्ण पर्व है, में विभिन्न साधुओं और श्रद्धालुओं का जमावड़ा होता है। इस महापर्व के दौरान, साधुओं के बीच चिलम पीने की प्रथा पर विवाद और चर्चाएं होती हैं। इस संदर्भ में, प्रसिद्ध योग गुरु स्वामी रामदेव ने अपनी राय साझा की है। उनके अनुसार, चिलम का सेवन आध्यात्मिक और सांस्कृतिक दृष्टिकोण से गलत नहीं है, परंतु इसे सीमित मात्रा में और सही संदर्भ में करना चाहिए।
स्वामी रामदेव का दृष्टिकोण
स्वामी रामदेव ने कहा कि महाकुंभ में साधुओं का चिलम पीना उनके आध्यात्मिक अनुभव का हिस्सा हो सकता है, लेकिन यह आवश्यक है कि साधु इस बात का ध्यान रखें कि इसका दुरुपयोग न हो। साधुता का अर्थ केवल भौतिक सुखों का त्याग करना नहीं है, बल्कि उन्होंने यह भी स्पष्ट किया कि साधु अपने स्वास्थ्य और मानसिक स्थिति का ध्यान रखें।
चिलम का ऐतिहासिक महत्व
चिलम पीने की प्रथा भारत के कई हिस्सों में एक सांस्कृतिक हिस्सा रही है। यह साधुओं के बीच एक परंपरा के रूप में देखी जाती है, जिसमें ध्यान और साधना के दौरान इसका उपयोग किया जाता है। स्वामी रामदेव ने यह भी कहा कि इस प्रथा का उपयोग सच्चे आध्यात्मिक अनुभवों के लिए किया जाना चाहिए और इसे केवल शोशनीयता का माध्यम नहीं माना जाना चाहिए।
समाज की प्रतिक्रिया
महाकुंभ में साधुओं द्वारा चिलम पीने पर समाज की प्रतिक्रियाएं मिली-जुली रही हैं। कुछ लोग इसे एक धार्मिक परंपरा मानते हैं, जबकि अन्य इसे अनुचित मानते हैं। स्वामी रामदेव ने इस विषय पर संतुलित दृष्टिकोण अपनाते हुए सभी को संयमित रहने की सलाह दी है।
इस प्रकार, महाकुंभ में साधुओं द्वारा चिलम पीने के संदर्भ में स्वामी रामदेव का संदेश स्पष्ट है: इसे संयमित और सही संदर्भ में करना चाहिए।
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