pwcnews एक्सक्लूसिव: प्रशिक्षण की आड़ में सतर्कता विभाग के कथित पापों पर पर्दा डालने की कोशिश? उत्तराखंड विजिलेंस पर गंभीर सवाल और अनकहे डर

उत्तराखंड के सतर्कता विभाग पर गंभीर आरोप सामने आए हैं। अधिकारियों द्वारा बिना पर्याप्त प्रशिक्षण, SOP के उल्लंघन के साथ लगातार निर्दोष अधिकारियों को फर्जी ट्रैप में फंसाने के मामले उजागर हुए हैं। निदेशक डॉ. वी. मुरुगेशन पर SOP से जुड़े तथ्यों को लेकर उच्च न्यायालय में गुमराह करने का आरोप है। प्रदेश में भ्रष्टाचार मुक्त अभियान के बीच सतर्कता विभाग खुद भ्रष्टाचार और अनियमितताओं के आरोपों में घिरा नज़र आ रहा है।

May 4, 2025 - 01:46
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pwcnews एक्सक्लूसिव: प्रशिक्षण की आड़ में सतर्कता विभाग के कथित पापों पर पर्दा डालने की कोशिश? उत्तराखंड विजिलेंस पर गंभीर सवाल और अनकहे डर
उत्तराखंड के सतर्कता विभाग पर गंभीर आरोप सामने आए हैं। अधिकारियों द्वारा बिना पर्याप्त प्रशिक्षण, SOP के उल्लंघन के साथ लगातार निर्दोष अधिकारियों को फर्जी ट्रैप में फंसाने के मामले उजागर हुए हैं। निदेशक डॉ. वी. मुरुगेशन पर SOP से जुड़े तथ्यों को लेकर उच्च न्यायालय में गुमराह करने का आरोप है। प्रदेश में भ्रष्टाचार मुक्त अभियान के बीच सतर्कता विभाग खुद भ्रष्टाचार और अनियमितताओं के आरोपों में घिरा नज़र आ रहा है।

हल्द्वानी/देहरादून: उत्तराखंड में 'भ्रष्टाचार मुक्त देवभूमि' का नारा जोर-शोर से बुलंद किया जा रहा है, लेकिन इस मुहिम की सबसे अहम एजेंसी, सतर्कता अधिष्ठान उत्तराखंड (Vigilance Uttarakhand), खुद ही गंभीर सवालों और विवादों के घेरे में है। pwcnews को मिली जानकारी और हालिया घटनाक्रमों के विश्लेषण से पता चलता है कि विभाग की कार्यप्रणाली, विशेषकर विजिलेंस हल्द्वानी (Vigilance Haldwani) और विजिलेंस देहरादून (Vigilance Dehradun) सेक्टरों में, पारदर्शिता और न्याय के सिद्धांतों पर खरी नहीं उतर रही है।

हाल ही में, सतर्कता अधिष्ठान सेक्टर कार्यालय हल्द्वानी में निदेशक डॉ. वी. मुरुगेशन के निर्देश पर विवेचकों और जांच अधिकारियों के लिए एक प्रशिक्षण कार्यक्रम आयोजित किया गया। आधिकारिक तौर पर इसका उद्देश्य त्रुटिरहित विवेचना और प्रभावी पैरवी सुनिश्चित करना बताया गया, ताकि भ्रष्टाचारियों पर नकेल कसी जा सके। लेकिन pwcnews की पड़ताल में यह सवाल उभरता है कि क्या यह प्रशिक्षण वास्तव में सुधार का प्रयास है या फिर विभाग (Vigilance Department) पर लगे गंभीर आरोपों, जैसे फर्जी रिश्वत मामले (fake bribe case) और उत्तराखंड फर्जी विजिलेंस केस (uttarakhand fake vigilance case) बनाने के आरोपों से ध्यान भटकाने की एक सुनियोजित रणनीति?

सबसे बड़ा प्रश्न यह है कि यह प्रशिक्षण अब क्यों? उन अनगिनत मामलों का क्या होगा जिनमें कथित तौर पर सतर्कता विभाग उत्तराखंड (Vigilance Uttarakhand) के अप्रशिक्षित अधिकारियों ने बिना किसी ठोस सबूत, बिना किसी लंबित कार्य (pendency) की पुष्टि के और सबसे महत्वपूर्ण, बिना किसी स्थापित मानक संचालन प्रक्रिया (SOP) के अभाव में कार्रवाई की? क्या उन अधिकारियों को प्रशिक्षित किया गया था जिन्होंने कथित तौर पर विजिलेंस हल्द्वानी द्वारा झूठे जाल (false trap by vigilance haldwani) बिछाए या विजिलेंस उत्तराखंड द्वारा फर्जी ट्रैप (fake trap by vigilance uttarakhand) को अंजाम दिया?

नेतृत्व पर संकट और SOP पर 'खुला खेल'

इस पूरे प्रकरण में विभाग के निदेशक, डॉ. वी. मुरुगेशन (Dr. V Murugeshan vigilance fraud), की भूमिका सवालों के घेरे में है। क्या यह अपने आप में गंभीर कदाचार और संस्थागत भ्रष्टाचार नहीं है कि अप्रशिक्जित (dishonest vigilance officer) या प्रक्रिया से अनभिज्ञ अधिकारियों को संवेदनशील ट्रैप ऑपरेशन करने की अनुमति दी गई, जिसके परिणामस्वरूप संभवतः कई ईमानदार अधिकारी भी फर्जी विजिलेंस केस (uttarakhand fake vigilance case) का शिकार बने?

न्याय के मंदिर, माननीय उच्च न्यायालय में जो हुआ, वह विभाग की कार्यप्रणाली पर और भी गंभीर सवाल खड़े करता है। रिकॉर्ड पर मौजूद तथ्यों के अनुसार, विभाग पर SOP को लेकर न्यायालय को गुमराह करने का आरोप है (sop fraud by murgesh vigilance uttarakhand)। यह चौंकाने वाला है कि कैसे विभाग के अधिकारियों ने शपथ लेकर SOP होने का दावा किया, जबकि बाद में कथित तौर पर निदेशक महोदय ने न्यायालय के समक्ष स्वीकार किया कि विभाग के पास कोई SOP नहीं है और न्यायालय से ही इसकी प्रति उपलब्ध कराने का अनुरोध किया! यह कथित विजिलेंस उत्तराखंड फ्रॉड (vigilance uttarakhand fraud) न केवल विभाग की विश्वसनीयता को तार-तार करता है, बल्कि यह दर्शाता है कि विजिलेंस उत्तराखंड (Vigilance Uttarakhand), विजिलेंस सेक्टर हल्द्वानी (Vigilance Sector Haldwani), विजिलेंस सेक्टर देहरादून (Vigilance Dehradun), विजिलेंस हेड क्वार्टर (Vigilance Head Quater) और विजिलेंस एस्टाब्लिशमेंट (Vigilance Establishment) में पारदर्शिता और जवाबदेही का कितना अभाव है।

मानवीय पीड़ा और अधिकारियों के लिए अनकहा डर

यह केवल फाइलों और नियमों के उल्लंघन का मामला नहीं है, यह उन अनगिनत परिवारों की मानवीय त्रासदी है, जिनके सदस्य कथित फर्जी ट्रैप (fake trap) का शिकार हुए। एक सरकारी कर्मचारी पर भ्रष्टाचार का दाग उसके जीवन भर की कमाई, इज़्ज़त और भविष्य को तबाह कर देता है। परिवार सामाजिक बहिष्कार झेलता है, बच्चे मानसिक पीड़ा से गुजरते हैं।

आज प्रशिक्षण की बात करने वाले अधिकारियों को सोचना चाहिए कि क्या अतीत में हुई कथित गलतियों का कोई प्रायश्चित है? समाज में यह डर और धारणा गहरी होती जा रही है कि निर्दोषों को सताने और उनके परिवारों को रुलाने वालों को प्रकृति या ईश्वर कभी माफ नहीं करता। क्या उन अधिकारियों को यह खौफ महसूस नहीं होता कि उनके द्वारा किए गए कथित अन्यायों का श्राप उनके बच्चों के भविष्य को अंधकारमय न कर दे? यह एक नैतिक बोझ है जो हर उस अधिकारी को महसूस होना चाहिए जिसने अपनी शक्ति का दुरुपयोग करके किसी निर्दोष की ज़िंदगी बर्बाद की हो।

न्यायिक हस्तक्षेप और मुख्यमंत्री की नेक नीयत

यह सार्वजनिक जानकारी में है कि श्रीमती भंडारी जैसे मामलों में माननीय उच्च न्यायालय को हस्तक्षेप करना पड़ा। भगवान तुल्य न्यायमूर्ति श्री राकेश थपलियाल जी ने व्यवस्था की खामियों को समझते हुए प्रशिक्षण की आवश्यकता पर बल दिया, जो स्वयं में विभाग की पूर्व की कार्यप्रणाली पर एक टिप्पणी है।

उत्तराखंड के मुख्यमंत्री श्री पुष्कर सिंह धामी एक ईमानदार और भ्रष्टाचार मुक्त शासन देने के लिए जाने जाते हैं। उनकी मंशा पर कोई संदेह नहीं है। वे वास्तव में एक ऐसा उत्तराखंड चाहते हैं जहाँ पारदर्शिता हो और भ्रष्टाचार न हो। लेकिन सतर्कता विभाग (vigilance department) की कथित कार्रवाइयां, जहाँ ईमानदार अधिकारियों को भी फर्जी विजिलेंस केस में फंसाने के आरोप लग रहे हैं, मुख्यमंत्री की इस नेक नीयत के ठीक विपरीत जाती हैं। क्या विभाग मुख्यमंत्री की सोच को पलीता लगा रहा है?

pwcnews का निष्कर्ष

pwcnews का मानना है कि केवल दिखावटी प्रशिक्षण से सतर्कता विभाग उत्तराखंड (Vigilance Uttarakhand) का दामन साफ नहीं होगा। विश्वसनीयता बहाल करने के लिए विभाग को कठोर कदम उठाने होंगे:

  1. उन सभी पुराने मामलों की स्वतंत्र और निष्पक्ष जांच हो, जिनमें फर्जी ट्रैप (fake trap by vigilance haldwani / fake trap by vigilance uttarakhand), फर्जी रिश्वत मामले (fake bribe case) या प्रक्रियात्मक धांधली (sop fraud) के आरोप हैं।
  2. निदेशक डॉ. वी. मुरुगेशन को इन आरोपों पर सार्वजनिक रूप से स्थिति स्पष्ट करनी चाहिए और पारदर्शिता सुनिश्चित करनी चाहिए।
  3. पीड़ितों को न्याय मिले और भविष्य में ऐसी घटनाओं की पुनरावृत्ति न हो, इसके लिए एक मजबूत और पारदर्शी SOP लागू की जाए।

जब तक इन कदमों को नहीं उठाया जाता, तब तक यह प्रशिक्षण महज आँखों में धूल झोंकने का प्रयास ही माना जाएगा। pwcnews इस गंभीर मुद्दे पर अपनी पैनी नज़र बनाए रखेगा और उत्तराखंड की जनता तक सच्चाई पहुंचाने के लिए प्रतिबद्ध रहेगा।

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