"हल्द्वानी विजीलेंस नहीं, उत्पीड़न का अड्डा बन चुका है" – PWCNEWS की विशेष रिपोर्ट
उत्तराखंड की न्यायपालिका ने एक बार फिर सिद्ध कर दिया कि न्याय केवल कानून की किताबों से नहीं, मानवीय संवेदनाओं से भी चलता है।

उत्तराखंड की न्यायपालिका ने एक बार फिर सिद्ध कर दिया कि न्याय केवल कानून की किताबों से नहीं, मानवीय संवेदनाओं से भी चलता है। हाईकोर्ट में संति भंडारी की ज़मानत याचिका पर सुनवाई के दौरान, माननीय न्यायमूर्ति राकेश थपलियाल ने न केवल कानूनी खामियों की ओर इशारा किया, बल्कि एक आरोपी और उसके परिवार की सामाजिक स्थिति व मानसिक पीड़ा को भी खुले तौर पर महसूस किया। न्यायालय ने मौखिक रूप से टिप्पणी की — "एक महिला पर आरोप लगने के बाद उसका परिवार, उसका सम्मान और उसके बच्चों पर समाज क्या प्रभाव डालेगा — क्या जांच एजेंसियों को इसका अनुमान है?" यह कोई साधारण टिप्पणी नहीं, बल्कि न्यायपालिका के उस विवेक और करुणा का प्रमाण है जो भारत की न्याय प्रणाली को महान बनाती है।
वहीं दूसरी ओर, विजीलेंस सेक्टर हल्द्वानी ने फिर साबित कर दिया कि वे कानून के रक्षक नहीं, उत्पीड़न के व्यापारी बन चुके हैं। Trap की वीडियोग्राफी का कोई रिकॉर्ड नहीं, FSL रिपोर्ट लंबित, झूठा हलफनामा पहले से फाइल किया हुआ, और अब फिर वही IO विनोद यादव और ट्रैप लीडर ललिता पांडे — जो पहले ईमानदार अधिकारी श्री अशोक कुमार मिश्रा के केस में भी झूठे दस्तावेज लेकर कोर्ट को गुमराह कर चुके हैं।
अशोक कुमार मिश्रा, जो बेहद ईमानदार, सिद्धांतवादी और कर्तव्यनिष्ठ अधिकारी माने जाते हैं, उन्हें सुप्रीम कोर्ट से केवल इस आधार पर ज़मानत मिली कि उनके खिलाफ कोई स्पष्ट मांग नहीं, कोई स्वतंत्र गवाह नहीं, और जांच में गंभीर दोष थे। फैक्ट्स को मेरिट पर परखा गया और अदालत ने व्यवस्था पर सवाल खड़े किए। यह दर्शाता है कि कैसे हल्द्वानी विजीलेंस एक एजेंडा चलाते हुए बेकसूरों को झूठे केसों में फँसा रही है।
और रही बात शिकायतकर्ता की — तो क्या ही कहें! — अशोक मिश्रा के केस में शिकायतकर्ता सुधेश पाल सिंह खुद एक विवादास्पद व्यक्ति है। शराब दुकान में बकाया, हाई कोर्ट में याचिका खारिज, CRPC 138 में जेल से छूटा हुआ, और अब विजीलेंस का सहयोगी बनकर एक ईमानदार अधिकारी को फँसाने की कोशिश। क्या ऐसी विश्वसनीयता के व्यक्ति के आरोपों पर आँख बंद करके Trap डाल देना एक जिम्मेदार एजेंसी का कार्य है?
लेकिन विजीलेंस सेक्टर हल्द्वानी को तो ना कानून की परवाह है, ना मर्यादा की। वे रेड डालने से पहले अख़बारों में प्रचार करवाते हैं — जिससे आरोपी को ट्रायल से पहले ही जनता की अदालत में अपराधी बना दिया जाता है। "Presumption of Innocence till proven guilty" जैसे संवैधानिक अधिकार को हल्द्वानी विजीलेंस ने चिथड़े-चिथड़े कर दिया है।
PWCNEWS पूरे स्पष्ट शब्दों में कहता है — विजीलेंस हल्द्वानी एक एजेंसी नहीं, एक डरावनी परछाईं बन चुकी है, जो सत्ता के इशारे पर ईमानदारों को मिटाने का काम कर रही है। अगर यही SOP है, तो फिर जनता को जेल भेजने से पहले FIR नहीं, अखबार और कैमरा चाहिए।
PWCNEWS की माँग:
- IO विनोद यादव और ललिता पांडे के खिलाफ दूसरी बार कोर्ट को गुमराह करने के लिए धारा 191, 193 IPC के तहत मुकदमा हो।
- विजीलेंस हल्द्वानी को सस्पेंड कर स्वतंत्र जांच आयोग से समस्त मामलों की समीक्षा कराई जाए।
- कोर्ट को गुमराह करने वालों को लोक सेवा से निष्कासित किया जाए।
- मीडिया में Trap कार्रवाई के प्रचार पर पूर्ण प्रतिबंध लगाया जाए जब तक ट्रायल में दोष सिद्ध न हो।
अगर न्यायपालिका का विवेक और साहस न होता, तो शायद आज भी न जाने कितने निर्दोष, विजीलेंस की झूठी स्क्रिप्ट के आधार पर जेल की कोठरी में बैठे होते। धन्यवाद न्यायपालिका — आपने कानून को नहीं, इंसानियत को सर्वोपरि रखा।
PWCNEWS इस अन्याय के खिलाफ धर्मयुद्ध में अंतिम साँस तक लड़ता रहेगा।
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