DBT ने सरकारी डिस्ट्रीब्यूशन में लीकेज को रोक सरकार के ₹3.48 लाख करोड़ बचाए, पीडीएस के तहत इतनी हुई बचत
ब्लूक्राफ्ट डिजिटल फाउंडेशन की एक रिपोर्ट के मुताबिक, डीबीटी से पहले के दौर (2009-2013) में, सब्सिडी कुल व्यय का औसतन 16 प्रतिशत थी, जो सालाना 2.1 लाख करोड़ रुपये थी, जिसमें सिस्टम में काफी रिसाव था।

DBT ने सरकारी डिस्ट्रीब्यूशन में लीकेज को रोका
देश में सरकारी वितरण प्रणाली में होने वाली लीकेज को रोकने के लिए डायरेक्ट बेनिफिट ट्रांसफर (DBT) प्रणाली ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। हाल ही में सरकार ने एक रिपोर्ट जारी की जिसमें बताया गया कि DBT के माध्यम से ₹3.48 लाख करोड़ की बचत की गई है। यह बचत सार्वजनिक वितरण प्रणाली (PDS) के अंतर्गत की गई है, जिससे यह स्पष्ट होता है कि सही दिशा में लिए गए कदमों के परिणाम कितने प्रभावी हो सकते हैं।
DBT प्रणाली का महत्व
DBT प्रणाली का उद्देश्य सरकारी योजनाओं के लाभों को सीधे लाभार्थियों के खाते में पहुंचाना है। इससे न सिर्फ वितरण में पारदर्शिता बढ़ी है, बल्कि लीकेज को भी काफी हद तक रोका गया है। इसके परिणामस्वरूप, सरकारी धन का अधिकतम उपयोग संभव हो पाया है।
पीडीएस के तहत बचत के लाभ
भारत में सार्वजनिक वितरण प्रणाली (PDS) गरीबों को खाद्य वस्तुएं सुनिश्चित करने का एक प्रमुख साधन है। DBT के कार्यान्वयन के बाद, PDS में लीकेज में कमी आई है, जिससे गरीबों को सामग्रियों का सही तरीके से वितरण किया जा सकता है। इससे न केवल लोगों की जरूरतें पूरी होती हैं, बल्कि आर्थिक स्थिति भी मजबूत होती है।
सरकार की अन्य पहलों का योगदान
सरकार ने अन्य पहल के साथ-साथ DBT प्रणाली को भी बढ़ावा दिया है। जैसे कि खाद्य सुरक्षा कानून, जो गरीबों को अनाज की सुरक्षा सुनिश्चित करता है। इन पहलों का एकमात्र उद्देश्य है कि गरीब लोगों को सरकारी मदद मिल सके, बिना किसी बाधा के।
कुल मिलाकर, DBT द्वारा सरकारी वितरण प्रणाली में सुधार लाने की दिशा में यह एक महत्वपूर्ण कदम है। इससे ना केवल आर्थिक बचत हुई है बल्कि समाज में अन्याय को भी कम किया जा रहा है।
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