Explainer: भारत और तालिबान के बीच दोस्ती से राजनीतिक और कूटनीतिक स्तर पर क्या हो सकते हैं नफा-नुकसान?

अफगानिस्तान में तालिबानियों के सत्ता में आने के बाद से ही नई दिल्ली और काबुल के बीच संबंध पूरी तरह से बिगड़ चुके थे। मगर पिछले दिनों दुबई में भारत के विदेश सचिव विक्रम मिस्त्री तालिबान के कार्यकारी विदेश मंत्री आमिर खान मुत्ताकी से हुई मुलाकात ने दोनों देशों के बीच संबंधों को फिर से नई पटरी पर लाने की कवायद शुरू कर दी।

Jan 19, 2025 - 14:53
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Explainer: भारत और तालिबान के बीच दोस्ती से राजनीतिक और कूटनीतिक स्तर पर क्या हो सकते हैं नफा-नुकसान?
Explainer: भारत और तालिबान के बीच दोस्ती से राजनीतिक और कूटनीतिक स्तर पर क्या हो सकते हैं नफा-नुकसान? News by PWCNews.com

परिचय

भारत और तालिबान के बीच बढ़ती हुई दोस्ती ने राजनीतिक और कूटनीतिक हलकों में एक नई चर्चा का आगाज़ किया है। एशिया के इस महत्वपूर्ण हिस्से में भारत की सुरक्षा और चिंताओं का ध्यान रखना आवश्यक है, विशेष रूप से जब तालिबान की गतिविधियों पर गौर करें। आओ जानते हैं कि इस दोस्ती के क्या फायदे और नुकसान हो सकते हैं।

भारत-तालिबान संबंधों का ऐतिहासिक संदर्भ

भारतीय प्रशासन ने हमेशा तालिबान के प्रति सतर्कता बरती है। हालांकि, हाल के दिनों में विदेशी नीति में कुछ परिवर्तन हुए हैं, जिससे दोनों पक्षों के बीच संवाद में वृद्धि हुई है। भारत के माध्यम से क्षेत्रीय स्थिरता की उम्मीद की जा रही है।

राजनीतिक लाभ

भारत के लिए तालिबान के साथ बेहतर संबंध स्थापित करना एक शानदार राजनीतिक कदम हो सकता है। यह भारत को अफगानिस्तान में अपने प्रभाव को बढ़ाने का एक अवसर प्रदान करता है और क्षेत्रीय सुरक्षा के मुद्दों पर तालिबान से सीधे संवाद करने की अनुमति देता है। इसके अलावा, इससे भारत को पाकिस्तान के प्रभाव को कम करने का भी लाभ मिल सकता है।

कूटनीतिक नुकसान

हालांकि, तालिबान के साथ संबंध बढ़ाने से भारत को कुछ कूटनीतिक नुकसान भी हो सकते हैं। तालिबान प्रशासन की विश्वसनीयता और उनके मानवाधिकार रिकॉर्ड पर सवाल उठते हैं। इससे भारत की अंतरराष्ट्रीय छवि पर नकारात्मक प्रभाव पड़ सकता है। इसके आलावा, अन्य पड़ोसी देशों, जैसे कि अफगानिस्तान, में भारत के दृष्टिकोण को भी चुनौती मिल सकती है।

संक्षेप में

भारत और तालिबान के बीच संबंधों में विकास एक जटिल विषय है। जहां एक ओर इसके तहत राजनीतिक लाभ और क्षेत्रीय प्रभाव बढ़ाने का एक मौका है, वहीं दूसरी ओर कूटनीतिक नुकसान भी उतने ही महत्वपूर्ण हैं।

निष्कर्ष

अंततः, भारत को तालिबान के साथ अपने संबंधों को विस्तार देने से पहले सावधानी पूर्वक सोचने की आवश्यकता है। इसके सभी पहलुओं का गहराई से अध्ययन करने से ही सही निर्णय लिया जा सकता है। Keywords: भारत तालिबान दोस्ती, राजनीतिक नफा-नुकसान, कूटनीतिक संबंध, तालिबान का प्रभाव, भारत की सुरक्षा, अफगानिस्तान की स्थिति, अनिश्चितता के दौर, क्षेत्रीय स्थिरता, तालिबान के मानवाधिकार, अंतरराष्ट्रीय छवि. For more updates, visit PWCNews.com.

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