चम्पावत का फूलडोल मेला: नागनाथ और बालेश्वर मंदिर से भगवान श्रीकृष्ण की भव्य डोला यात्राएं

चम्पावत। श्रीकृष्ण जन्माष्टमी के एक दिन बाद 17 अगस्त को चम्पावत में फूलडोल मेला हुआ। आस्था, परंपरा, संस्कृति और सामाजिक

Aug 18, 2025 - 00:53
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चम्पावत का फूलडोल मेला: नागनाथ और बालेश्वर मंदिर से भगवान श्रीकृष्ण की भव्य डोला यात्राएं

चम्पावत का फूलडोल मेला: नागनाथ और बालेश्वर मंदिर से भगवान श्रीकृष्ण की भव्य डोला यात्राएं

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कम शब्दों में कहें तो, चम्पावत में 17 अगस्त को श्रीकृष्ण जन्माष्टमी के एक दिन बाद रंगारंग फूलडोल मेला आयोजित हुआ, जिसमें हजारों श्रद्धालुओं ने भाग लिया। इस मेले ने आस्था, संस्कृति और सामाजिक समरसता के अद्भुत संगम को प्रदर्शित किया। भक्तिमय उद्घोषणाओं के साथ नागनाथ और बालेश्वर महादेव मंदिर से भगवान श्रीकृष्ण की डोला यात्राएं निकलीं, जिसने सभी उपस्थित लोगों को मंत्रमुग्ध कर दिया।

फूलडोल मेले का महत्व

फूलडोल मेला हमारी परंपराओं और धार्मिक आस्थाओं का सांस्कृतिक प्रतीक है। इस मेले में लोग भगवान श्रीकृष्ण की पूजा करते हुए सामाजिक एकता और भाईचारे को भी बढ़ावा देते हैं। हर वर्ष यह मेला अत्यधिक धूमधाम से मनाया जाता है, जहाँ लोग अपनी इच्छाएं पूरी करने के लिए प्रार्थना करते हैं। इस उत्सव में न केवल धार्मिक भावनाएँ समाहित होती हैं, बल्कि समुदाय के लोगों के बीच आपसी प्रेम और सहयोग का माहौल भी बनता है।

डोला यात्राओं की विशेषताएँ

इस वर्ष की डोला यात्राएं विशेष रूप से भव्य और रंगीन रहीं। नागनाथ मंदिर से निकली श्रीकृष्ण की डोला यात्रा के दौरान श्रद्धालुओं ने भक्ति के साथ नृत्य किया और आनंदित होते गए। इसके अलावा, बालेश्वर मंदिर से भी बड़ी संख्या में श्रद्धालु शामिल होकर अपनी श्रद्धा अर्पित करते नजर आए। पूरे आयोजन के दौरान भक्ति गीतों की गूंज ने माहौल को और भी दिव्य बना दिया।

समाज में समरसता की छवि

फूलडोल मेला केवल धार्मिक आस्था का केंद्र नहीं है, बल्कि यह समाज में समरसता का प्रतीक भी बन गया है। विभिन्न समुदायों और सामाजिक वर्गों के लोग एक साथ इस मेले में भाग लेते हैं, जो सामाजिक एकता की भावना को मजबूत करता है। ऐसे सांस्कृतिक आयोजनों से आपसी सहयोग और समर्पण की भावना में वृद्धि होती है, जिससे समाज में भाईचारा कायम होता है।

निष्कर्ष

फूलडोल मेला हर साल नई ऊर्जा और पहचान प्रदान करता है। यह हमारे धार्मिक, सांस्कृतिक और सामाजिक मूल्यों का एक अनूठा प्रतीक है। हमें इस तरह के आयोजनों को प्रोत्साहित करना चाहिए ताकि आने वाली पीढ़ियों में भी आस्था और संस्कृति का यह धनात्मक संगम जीवित रहे।

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Written by: प्रियंका दास

Team PWC News

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