भारत ने रूस से खरीदा 112.5 अरब यूरो का कच्चा तेल, यूक्रेन युद्ध शुरू होने के बाद तेजी से बढ़ा आयात
रूस से जीवाश्म ईंधन आयात के मामले में चीन 235 अरब यूरो (तेल के लिए 170 अरब यूरो, कोयले के लिए 34.3 अरब यूरो और गैस के लिए 30.5 अरब यूरो) के साथ सबसे आगे रहा। सीआरईए के मुताबिक, भारत ने यूक्रेन युद्ध शुरू होने के बाद से 2 मार्च, 2025 तक के 3 सालों में रूस से कुल 205.84 अरब यूरो के जीवाश्म ईंधन खरीदे।

भारत ने रूस से खरीदा 112.5 अरब यूरो का कच्चा तेल
यूक्रेन युद्ध की शुरुआत के बाद भारत के लिए कच्चे तेल के आयात में उल्लेखनीय वृद्धि हुई है। इस स्थिति में, भारत ने हाल ही में रूस से 112.5 अरब यूरो का कच्चा तेल खरीदने का निर्णय लिया है। यह कदम वैश्विक ऊर्जा बाजार में भारत की स्थिति को मजबूत करता है और ईंधन की महंगाई को नियंत्रित करने में मदद कर सकता है।
कच्चे तेल के आयात में वृद्धि
यूक्रेन युद्ध के बाद से, वैश्विक कच्चे तेल की कीमतों में जो उथल-पुथल हुई है, उसके चलते भारत ने रूस से कच्चे तेल के आयात को तेज किया है। इस आयात का मुख्य उद्देश्य देश में ऊर्जा सुरक्षा को सुनिश्चित करना और विभिन्न उद्योगों की मांग को पूरा करना है। रूस के से कच्चे तेल की बढ़ती खरीद भारत की ऊर्जा जरूरतों को पूरा करने में महत्वपूर्ण साबित हो रही है।
भारत और रूस के बीच सामरिक संबंध
भारत और रूस के बीच के संबंध सदियों पुराने हैं और ऊर्जा के क्षेत्र में सहयोग दोनों देशों के लिए फायदेमंद रहा है। यह सौदा न केवल भारत के ऊर्जा सुरक्षा को बढ़ावा देगा, बल्कि रूस के साथ बेहतर व्यापारिक संबंध भी स्थापित करेगा। इससे दोनों देशों के लिए लंबी अवधि में आर्थिक लाभ संभव है।
भविष्य की दृष्टि
आने वाले समय में, भारत के पास कच्चे तेल की बढ़ती जरूरतों को पूरा करने के लिए अधिक स्रोतों की आवश्यकता होगी। इस जानकारी के साथ, विशेषज्ञ अनुमान लगाते हैं कि भारत सरकार अधिक अंतरराष्ट्रीय सहयोग के अवसरों का पता लगाएगी एवं ऊर्जा के विविधीकरण पर ध्यान केंद्रित करेगी। इसकी वजह से भारत वैश्विक ऊर्जा बाजार में एक प्रमुख खिलाड़ी के रूप में उभरेगा।
फिर से, यह स्पष्ट है कि भारत ने कच्चे तेल के आयात में जो वृद्धि की है, वह केवल एक आर्थिक कदम नहीं है, बल्कि यह देश के विकास और सामरिक संबंधों का भी परिचायक है। इसके अलावा, भारत की यह रणनीति यूक्रेन युद्ध के दीर्घकालिक प्रभावों को भी दर्शाती है, जिसे उसे ध्यान में रखना होगा।
इन सभी पहलुओं को ध्यान में रखते हुए, यह कहा जा सकता है कि भारत का यह कदम न केवल ऊर्जा सुरक्षा को सुनिश्चित करता है, बल्कि दोनों देशों के बीच की मित्रता को भी और मजबूत बनाता है।
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