राज्य निर्वाचन आयोग की भूमिका पर करन माहरा ने उठाए गंभीर सवाल
उत्तराखंड कांग्रेस अध्यक्ष करन माहरा ने पंचायत चुनाव में राज्य निर्वाचन आयोग की भूमिका को...

राज्य निर्वाचन आयोग की भूमिका पर करन माहरा ने उठाए गंभीर सवाल
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उत्तराखंड कांग्रेस अध्यक्ष करन माहरा ने पंचायत चुनाव में राज्य निर्वाचन आयोग की भूमिका को लेकर गंभीर सवाल खड़े किए हैं। माहरा ने कहा कि भारतीय चुनाव आयोग के साथ-साथ उत्तराखंड राज्य निर्वाचन आयोग की भूमिका भी अब सवालों के घेरे में है, और यह चिंताजनक है कि आयोग कानून के प्रति नहीं, बल्कि सत्ता के प्रति जवाबदेह होता जा रहा है।
संजीदा समस्या
हाल ही में हुए नगर निकाय और पंचायत चुनावों की प्रक्रिया ने यह साबित कर दिया है कि आयोग सत्ता के दबाव में झुकता नज़र आ रहा है। इसका स्पष्ट उदाहरण उत्तराखंड पंचायती राज अधिनियम के निहित नियमों के उल्लंघन से मिलता है, जिसमें उल्लेख किया गया है कि यदि किसी व्यक्ति का नामांकन दाखिल करते समय नाम शहरी और ग्रामीण दोनों में दर्ज है, तो उसका पर्चा स्वतः अमान्य हो जाता है। लेकिन अनेक जिलों में इस नियम का चुनावी लाभ उठाते हुए दरकिनार किया गया है।
चुनावों में पक्षपात और गड़बड़ियाँ
कुछ उदाहरणों द्वारा ये समस्याएं उजागर होती हैं:
- काशीपुर: अनुसूचित जाति की उम्मीदवार नर्मता का नामांकन निरस्त कर दिया गया जबकि मायके का प्रमाणपत्र मान्य होने के बावजूद।
- रुद्रप्रयाग: एक प्रत्याशी पर सरकारी बकाया राशि होने के बावजूद उनका नामांकन स्वीकार कर लिया गया।
इन उदाहरणों से स्पष्ट होता है कि चुनाव आयोग ने निष्पक्षता के सिद्धांत की अनदेखी की है, जिससे चुनावी प्रक्रियाओं की विश्वसनीयता पर प्रश्न उठता है। इसका असर सीधे लोकतंत्र के मूल पर पड़ता है, विशेषकर जब सरकार का इरादा सत्ता के समीकरण साधने का हो।
अधिकारियों की भूमिका
माहरा ने यह भी कहा कि निर्वाचन अधिकारियों की भूमिका अत्यंत महत्वपूर्ण होती है। अधिकतर जिलों में अनुभवहीन और कनिष्ठ अधिकारियों को महत्वपूर्ण चुनावी जिम्मेदारियां सौंपी गई हैं। ये अधिकारी न तो प्रशासनिक रूप से प्रशिक्षित हैं और न ही स्वतंत्र निर्णय लेने की स्थिति में हैं।
यह स्थिति बेहद चिंताजनक है, क्योंकि ऐसे में निष्पक्ष चुनाव की संभावना कम हो जाती है। माहरा का कहना है कि यह खतरनाक संकेत है कि जब शासन और प्रशासन दोनों ही सत्ता के इशारों पर चलते हैं, तब लोकतंत्र एक दिखावा बनकर रह जाता है।
निष्कर्ष
करन माहरा ने कहा कि भाजपा सरकार यदि ऐसे ही अपनी मनमानी करती रही, तो आने वाले समय में जनविश्वास की हार होगी। उन्होंने लोगों से यह भी कहा है कि जनता को इस गड़बड़ी पर ध्यान देना चाहिए और तब तक संघर्ष करना चाहिए जब तक कि सही तरीके से चुनाव न हो।
इस तरह से, माहरा की चिंताएं केवल उत्तराखंड तक ही सीमित नहीं हैं, बल्कि यह पूरे देश में चुनावी प्रक्रिया की ईमानदारी को प्रभावित कर सकती हैं। यदि हमें सही सरकार और जनहितेषी नीतियों की जरूरत है, तो आवश्यक है कि निर्वाचन आयोग को अपनी भूमिका को निष्पक्षता के साथ निभाना चाहिए।
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